परफार्मेंश अप्रेजल आया -
भ्रष्टाचार को और बढाया
सरकारी कुछ चीज अलग थी
मस्ती सब के जाती छाती
एक बार घुस गये अगर तो
कौन निकाले किसकी छाती
फ़ाइल का है वजन बहुत ही टेबल बैठी बस हैं सोती
विधवा पेंशन लगवाने को
बहा हुआ घर बनवाने को
बड़ी तपस्या करनी पड़ती
पाँव दबाओ -बाबू साहेब कह कर उनका घर उनके कुछ दान दक्षिणा
टी.व्ही.फ्रिज ही ले जा दे दो
चन्दन लगा यहाँ जो बैठे
उनसे भी कुछ जा के निपटो
पहिया तब फाईल को लगती लंगड़े सी वो चले रगडती
अगर कहीं सच्चा मिल जाता
कल सीमा या जंगल जाता !!
III
प्राइवेट में कम नखरे ना
नया नियम कानून धरा है
चमचागीरी -लूटो-बाँटो
बॉस के अपने तलवे चाटो
फुलवारी जा उनकी देखो
गेंहू चावल कुछ लदवा दो
काम करो चाहे सो जाओ
हाँ में हाँ तुम चलो मिलाओ
तभी प्रशंसा पत्र हाथ में
साल में दो परमोशन पाओ
या छोड़ कंपनी दस दिन घूमे
लौट के आओ
कौवा से तुम हंस बने
गधे से घोडा -दौड़ दिखाओ
चलने दो उनकी मनमानी
मुह खोलो ना कर नादानी
अगर चले विपरीत कहीं भी
तेरी फसल पे पत्थर पानी
“परफार्मेंस अप्रेजल” आया
“भ्रष्टाचार” को और बढाया
जिसने बंदी हमें बनाया
अब लगाम उन के हाथो में
चाहे रथ वे जैसे हांके
बड़ी गुलामी -
सुबह शाम कब ??
बच्चे -बूढ़े हों ??
लगे रहो बस निकले दम
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011
सरकारी नौकरी में तो साल में इससे बस एक बार जूझना पड़ता है प्राइवेट में शायद हर महीने, या हर दिन।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने! मैं मनोज जी के बातों से सहमत हूँ!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www.seawave-babli.blogspot.com/
आदरणीय मनोज जी सच कहा आप ने निजी संस्थाओं में तो सच रोज रोज का किस्सा है झेलते ही रहना है -काम उनसे दूना और दाम ....?
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभार
भ्रमर५
प्रिय बबली जी -रचना कुछ सटीक रही विषय के -तथ्य परक सुन हर्ष हुआ
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभार
भ्रमर५