उनको हमने दिया "सुदर्शन"
"भ्रमर " कहें रखवाली लाये !
कौन जानता -सभी शिखंडी
नाच-गान ही मन को भाए !!
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मन छोटा कर घर से अब तो
"जान हथेली" ले निकले !
"दो रोटी" के खातिर अब तो
"तिलक लगा" घर वाले भेजें
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छद्म युद्ध है- नहीं सामने
योद्द्धा ना - कोई शर्तें !
"कायर" ही अब भरे हुए हैं
पीठ में ही छूरा घोंपें !!
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ह्रदय काँपता अब संध्या में
दिया जले या बुझ जाए !
"रोज-रोज आंधी" आती है
जो उजाड़ सब कुछ जाए !!
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"ढुलमुल नीति " से भंवर फंसे हैं
दो कश्ती पर पाँव रखे !
एक किनारे पर जाने को
साहस -नहीं -ना-दम भरते !!
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चिथड़े पड़े "खून" बिखरा है
"ह्रदय विदीर्ण" हुआ देखे !
आँखें नम हैं धरती भीगी
"जिन्दा लाश" बने बैठे !!
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अर्धनग्न -महफ़िल में मंत्री
शर्म -हया सब बेंच खोंच के !
हो मदान्ध- हैं बौराए ये
इस पीड़ा- क्षण -जा बैठे !!
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हंसी -ठिठोली -सुरा- सुन्दरी
जुआ -दांव में बल आजमायें
ये क्या जानें - पीर परायी
निज ना मरा -दर्द क्या होए !!
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ना जाने क्यों पाले कुत्ते
बोटी नोचे - देख रहे
ये राक्षस हैं - पापी ये
"धर्मराज" बन कर बैठे !!
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जो तुम "तौल नहीं सकते सम"
गद्दी से - मूरख - उठ- जाओ !
"हाथ" में अब भी कुछ ताकत तो
"उसको" तुम फ़ौरन लटकाओ !!
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भ्रमर ५
१५.७.२०११ जल पी बी १० मध्याह्न
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