MUSKURA KE TO JAAIYE

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

चार संत की भीड़ जुटाकर हवन यज्ञं मत करना


चार संत की भीड़ जुटाकर 
हवन यज्ञं मत करना 

पहले गीदड़ भभकी होती 
बन्दर घुड़की होती !
चार जाने मिल कर लेते थे 
अपने घर रखवाली !
सीटी जरा बजा देने पर 
भीड़ थी जुटती भारी !
सिर पर पाँव रखे कुछ भागें !
साथ साथ उठ के सब धाते !
रात रात भर रहते जागे !!
अब तो सोये सभी पड़े हैं 
चाहे ढोल बजाओ !
उनके -घर सब मरे पड़े हैं 
भीड़ लगे -उठ -जगा दिखाओ  
अब तो शेर दहाड़े -"भाई"
कुछ करोड़ ले आना !
भरा समुन्दर -भंवर बड़ी है 
माझी कुशल जुटाना !!
ताकत हो जिनकी बांहों में 
दूर दृष्टि जो रखते !
कुटिल नीति चाणक्य बड़े हैं 
उनकी जान बचाए !
बज्र हमारा चुरा लिए हैं 
गरजें -  अब चिल्लाएं !
हर नुक्कड़ चौराहे देखो 
राक्षस - संत बने घुस आये !
उनकी रोज परीक्षा करना 
हीरा-कांच परख तू रखना !
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चार संत की भीड़ जुटाकर 
हवन यज्ञं  मत करना !
परसुराम-संग राम बुलाकर 
खुद की रक्षा करना !
पहले - इतिहास तो देख लिए 
अब वर्तमान को बुनना !
देश -काल कुछ पढो "भ्रमर" तुम 
प्रेम सीख -बस कैद न मरना !!
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शुक्ल भ्रमर 
२९.०६.२०११
जल पी बी 

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