चार संत की भीड़ जुटाकर
हवन यज्ञं मत करना
पहले गीदड़ भभकी होती
बन्दर घुड़की होती !
चार जाने मिल कर लेते थे
अपने घर रखवाली !
सीटी जरा बजा देने पर
भीड़ थी जुटती भारी !
सिर पर पाँव रखे कुछ भागें !
साथ साथ उठ के सब धाते !
रात रात भर रहते जागे !!
अब तो सोये सभी पड़े हैं
चाहे ढोल बजाओ !
उनके -घर सब मरे पड़े हैं
भीड़ लगे -उठ -जगा दिखाओ
अब तो शेर दहाड़े -"भाई"
कुछ करोड़ ले आना !
भरा समुन्दर -भंवर बड़ी है
माझी कुशल जुटाना !!
ताकत हो जिनकी बांहों में
दूर दृष्टि जो रखते !
कुटिल नीति चाणक्य बड़े हैं
उनकी जान बचाए !
बज्र हमारा चुरा लिए हैं
गरजें - अब चिल्लाएं !
हर नुक्कड़ चौराहे देखो
राक्षस - संत बने घुस आये !
उनकी रोज परीक्षा करना
हीरा-कांच परख तू रखना !
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चार संत की भीड़ जुटाकर
हवन यज्ञं मत करना !
परसुराम-संग राम बुलाकर
खुद की रक्षा करना !
पहले - इतिहास तो देख लिए
अब वर्तमान को बुनना !
देश -काल कुछ पढो "भ्रमर" तुम
प्रेम सीख -बस कैद न मरना !!
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शुक्ल भ्रमर ५
२९.०६.२०११
जल पी बी
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