निज मन तू पहचाने बन्दे
पूत आत्मा तेरी
निश्छल गंगा से बहने दे
कभी न होए मैली !!
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सोना चांदी लाद -लाद तन
मन पर बोझ बढ़ाये
ममता प्यार सत्य अनुशासन
नियम -नीति भूला जाए !!
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बही दिखावा गठरी सारी
अहम बड़प्पन सारे
छीन झपट घर महल सजाना
व्यर्थ -काम ना आते !!
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दान मान मर्यादा -धीरज
संयम दया प्रेम रख -सारे
भूखे को रोटी दे देना
अंधियारे में दीप जला दे
ख़ुशी किसी चेहरे दे देना
मीठे बोल -घोल रस देना !!
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सत्कर्मों या दुष्कर्मों का
फल है निश्चित-लेना
गाँठ बाँध मन सोच रे भाई
क्या बबूल से -आम है लेना !!
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अंत में “नंगे” कर नहलाएं
गहने -कपडे -सभी उतारें
गठरी-गुण-धर्मों की बांधें
लूट कोई ना पाए !!
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यही चले है संग तुम्हारे
धर्मराज "स्वागत" आते
यही आत्मा आलोकित हो
"अमर" -धरा को स्वर्ग करे !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
२३.०७.२०११ ७.५१ पूर्वाह्न
सत्कर्मों या दुष्कर्मों का
जवाब देंहटाएंफल है निश्चित-लेना
गाँठ बाँध मन सोच रे भाई
क्या बबूल से -आम है लेना !!
सटीक लिखा है आपने ! बहुत बढ़िया लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सभी दोहे सार्थक सन्देश दे रहे हैं ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंप्रिय बबली जी सत्कर्मों या दुष्कर्मों का फल तो निश्चित ही यहीं मिलना ही है -रचना आप को अच्छी लगी लिखना सार्थक रहा
जवाब देंहटाएंआभार आप का
भ्रमर ५
प्रिय दिगंबर जी सत्कर्मों या दुष्कर्मों का फल तो निश्चित ही यहीं मिलना ही है -दोहे सार्थक लगे -रचना आप को अच्छी लगी लिखना सार्थक रहा
जवाब देंहटाएंआभार आप का
भ्रमर ५